आज एक महीना हो गया नानी को गुजरे हुए। लेकिन लगता ही नहीं की ऐसा कुछ हुआ है। उनसे इतनी दूर रहता था, शायद इसीलिए ये एहसास नहीं होता। हाँ इतना ज़रूर लगता है की अब किसको फ़ोन करू। कौन कहेगा की शादी कर लो। और कौन ज्ञान की बाते कहेगा।
मेरी नानी पड़ी लिखी नहीं थी। लेकिन मैंने उनसे जायदा पड़ा लिखा और किसी को नहीं देखा। मजाल क्या की कोई भूका घर से लौट जाये। अपने खाने में से भी बचा के रख लेना की कोई आयेगा तो खा लेगा ऐसा त्याग मैंने नहीं देखा। आखिरी सांस तक सिर्फ दूसरो की चिंता।
अभी नवम्बर में ही तो मिला था उनसे। तब उन्होंने ॐ आनंद मय ॐ शांति मय का मंत्र दिया मुझे। और बताया इसे उनके बाबा ने कहा था की कभी मत भूलना। तब इन सब बातो को सुनकर थोडा अजीब लगा की नानी आज ये क्यों बता रही है। और आज लगता है की शाएद ये उनकी दूरदर्शिता ही थी की उन्होंने ने काफी पहले ही मुझे बता दिया था।
कभी कभी नानी खूब बाते करती थी और दुनिया भर की ज्ञान की बाते बताती थी। बस अब यही लगता है किससे वो सब बाते करूंगा। मलाल ही रह गया और नानी चली गयी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
अक्सर हम अपनों के जाने के बाद ही तडपते हैं, मानवीय भूलें बरसों रुलाती हैं मगर तब तक अक्सर देर हो जाती है ...
शुभकामनायें !
Dhanyawad!!
Post a Comment