Thursday, October 23, 2008

ट्रेन में मराठी छात्राओं से छेड़छाड़, पथराव

इटावा। मुंबई में राज ठाकरे द्वारा लगाई गई आग की लपटों से उत्तर भारतीय लोग भी झुलसने लगे है। गुरुवार को अप ओखा एक्सप्रेस में यात्रा कर रही मराठी छात्राओं को देख छात्रों का गुस्सा भड़क गया।भरथना-अछल्दा स्टेशन के मध्य छात्रों ने छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की तथा विरोध करने पर पत्थर भी चलाए। इस दौरान यात्रा कर रहे एक सिपाही की भी छात्रों ने पिटाई कर दी और भरथना स्टेशन पर उतर गए।

मैं आप सभी लोगो से प्राथना करता हूँ कि आम लोगो को परेशान ना करें। गुस्सा है तो सिर्फ़ राज ठाकरे के उपर निकाले। क्योंकि उसने जो भी नाटक किया, उसकी सजा हमारे और आपके जैसे साधारण जनता को क्यों मिले। अपने देश कि संपत्ति का नुकसान न करे। क्यों कि इससे देश का ही नुकसान है राज ठाकरे का नही।

Sunday, October 19, 2008

रेलवे की परीक्षा देने मुंबई गए उत्तर भारतीयों की पिटाई

हद कर दी आपने !!
रेलवे भर्ती बोर्ड की प्रवेश परीक्षा देने मुंबई पहुंचे बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों को शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने कई इलाकों में घेर-घेर कर मारा। कार्यकर्ताओं ने परीक्षा केंद्रों में घुसकर भी छात्रों की पिटाई और उन्हें वहां से भगा दिया।

देश को विभाजित करने के षडयंत्र के तहत राज ठाकरे को जेल में बंद कर देना चाहिए।

Saturday, October 18, 2008

माया ने रेल फैक्टरी की जमीन लौटाई.

माया की माया अपरम पार। कभी दलितों की मसीहा तो कभी किसानो की रक्षक। मगर सारे काम देश की प्रगति के खिलाफ। कभी तो आंबेडकर पार्क बनाने की धुन तो कभी आंबेडकर मूर्ति लगवाने की। और खर्चा करोड़ो में।
अच्छी बात है की आप देश का विकास करना चाहती है, मगर कम से कम जो शहर नरक बनते जा रहें हैं वहां पर भी थोड़ा ध्यान दे। मूर्ति और पार्क बनवाने की जगह स्कूल और विद्यालय खोले।
दलितों की मसीहा बने, आप मगर लोगो को आपस में लड़वाए तो ना। किसानो की रक्षक बने, लेकिन देश की प्रगति के खिलाफ जाकर नही। ऐसे समय में दिमाग से काम ले और ऐसा रास्ता निकले जिससे गरीब किसान को नुक्सान न हो, लेकिन देश भी प्रगति करे।

Friday, October 17, 2008

काँच की बरनी और दो कप चाय

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी ? ये तुम्हें तय करना है अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक- अप करवाओ॥

टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो
, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि 'चाय के दो कप' क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये

Sunday, October 12, 2008

मूर्तियों का विसर्जन.

हम गंगा मैया में मूर्तियों का विसर्जन कर उसमें घातक रसायन घोल रहे हैं। प्लास्टर ऑफ पेरिस से भी मोक्षदायिनी 'जैविकता' पर आंच आ जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे हमारी आस्था भी बनी रहे और नदी की शुचिता भी?

मेरे ख्याल से हम लोगो को मूर्तियाँ लेते समय ये सुनिश्चित करना चाहिए की वो सिर्फ़ मिटटी से ही बनी हो। या फ़िर स्पेशल आर्डर दे कर बनवायें। ऐसा करने से नदी भी साफ़ रहेगी और हमारी आस्था भी बनी रहेगी।
जरूरत है हम लोगो को जागरूक होने की।

Thursday, October 9, 2008

राज ठाकरे - क्या कर रहे हो?

सभी लोग देश में चुप हैं। और राज ठाकरे साहेब को जो भी मन में आता है बोलते हैं। मुझे तो ऐसा लगता है की वो देश में आतंक फैला रहे हैं। कम से कम महाराष्ट्र में तो कर ही रहे हैं। लोगो को आपस में लड़ा कर वोट लेना। किस स्तर की राजनीति है ये?

छेत्रवाद, जातिवाद - देश के लिए ठीक नही है। काश लोगो को ये बात समझ में आए और उनको अगले चुनाव में इसका जवाब दे।

Friday, October 3, 2008

पाटिल जी - सोच के बोलें.

किसी ने सच ही कहा है की जिनके घर कांच के हो वो पत्थरो से नही खेला करते!!
पाटिल जी से दिल्ली तो संभल नही रही है। और रोना चालू है की उडीसा में चर्च को जलाया जा रहा है हम दोषियों को सजा देंगे। अरे भाई जिनको जेल में बंद करके रक्खा है इतने दिनों से उनको कब सजा दोगे।
लगता है माननीय गृह मंत्री सिर्फ़ अपने गृह के अन्दर रहते हैं। इनको भी अवकाश मुक्त हों जाना चाहिए।

भगवन अर्जुन सिंह की आत्मा को शान्ति दे.

लगता है की उमर के साथ दिमाग कमजोर हो गया है श्रीमान अर्जुन सिंह जी का। जब भी बात करते हैं तो उनकी बात बिना सर पैर की होती है। अब नया मुद्दा - शोध और रिसर्च में रिज़र्वेशन।
अरे मेरे भाई कोई जगह तो जाने दो। कम से कम देश कहाँ जाएगा ये तो सोचो। विश्व में तगडी पर्तिस्पर्धा है। और माननीय महोदय को क्या बोलें। ख़ुद भी उनको समझ नही आता की अब उनको अवकाश मुक्त हो जाना चाहिए।
हम कुछ बोलेंगे, तो लोग बोलेंगे की बोलता है।